सप्ताहांत: आखिर आप क्या क्या बंद करेंगे
सतर्कता मूलक उपाय के रूप में पहली बार जब उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था तो इसका हमने बीमारी से निज़ात पाने के लिए एक कड़वी दवा के रूप में स्वागत किया था। हालांकि सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में इंटरनेट पर रोक से होने वाली परेशानियों व आर्थिक क्षति के बारे में काफी कुछ कहा गया।पर इस वृहस्पतिवार को जब दूसरी बार पुनः इंटरनेट पर रोक लगाई गई तो लगा कि कड़वी दवा की कुछ ओवरडोज़ हो रही है। दवा ज्यादा खाना या खिलाना भी कभी कभी नुकसानदेह हो जाता है। और दवा की आदत पड़ जाना और भी खतरनाक।
यह बड़ी विडंबना है कि कानून व्यवस्था नियंत्रण में न हो तो इंटरनेट बंद कर दो, मेट्रो का चलना बंद कर दो, राजनीतिक नेताओं को अपराधियों की तरह नजरबंद कर दो, यातायात पर नियंत्रण न हो तो सड़कों से बारात निकलना बंद कर दो, एम जी रोड पर ऑटो चलना बंद कर दो, वी वी आई पी मूवमेंट हो रहा है तो सड़कों पर यातायात रोक दो। हद है, अपनी व्यवस्था में सुधार करने की बजाय आम जनता की सुविधाओं पर रोक लगा दो, उन्हें परेशानियों के जंगल में विचरण करने भेज दो।
एक दिन ऐसा आ जायेगा कि आप कहेंगे कि सब्जी नकली आ रही है-खाना छोड़ दो, दवाएं नकली आ रही हैं-खाना छोड़ दो, प्याज महंगी होती है तो नेता लोग कहने लग ही जाते हैं कि खाना छोड़ दो। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने में असफल रहने पर ऐसे तो ये लोग एक दिन आदेश पारित कर देंगे कि महिलाएं घर से बाहर ही न निकलें। वो तो इनके वश में नहीं है वरना गर्मी में सूरज के निकलने पर रोक लगा दें और जब सड़कों पर पानी भरने लगे तो बादलों को न बरसने का आदेश दे दें।
सुविधाओं पर प्रतिबंध लगाने से संदेश भी गलत जाता है, इसे अपनी कमजोरी समझा जाने लगता है। नव वर्ष आ रहा है। हम आशा करते हैं कि नया साल 2020 शांति व सौहार्द पूर्ण वातावरण में प्रारंभ होगा और किसी भी प्रकार के प्रतिबंध की आवश्यकता ही नहीं होगी। प्रतिबंध लगाने की बजाय अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
आप सभी को नव वर्ष की बधाई व उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामनाएं।
– सर्वज्ञ शेखर