साइड इफ़ेक्ट

साइड इफ़ेक्ट को प्रायः दुष्प्रभाव के रूप में ही जाना जाता है। जब भी कोई दवा लेते हैं तो समझदार लोग उसके साइड इफ़ेक्ट के बारे में जरूर जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। आजकल दवाओं के ही नही हर बात के साइड इफ़ेक्ट को देखा जाता है। कोई फ़िल्म आई तो उसका साइड इफ़ेक्ट क्या होगा, किसी ने भाषण दिया तो उसका साइड इफ़ेक्ट क्या होगा, आदि आदि।

साइड इफ़ेक्ट की परिभाषा या अर्थ की बात करे तो दो बिंदु सामने आते हैं –

  • (औषध के अनुकूल परिणाम का) सहगामी दुष्‍प्रभाव
  • किसी वस्‍तु के)अभीष्‍ट प्रभाव के साथ होने वाला अप्रत्‍याशित (और अनुकूल) प्रभाव

मुझे लगता है कि दूसरा बिंदु ज्यादा सटीक है । साइड इफ़ेक्ट को हमेशा नकारात्मक रूप से नही देखा जा सकता। इसका अर्थ होना चाहिए सहगामी प्रभाव न कि दुष्प्रभाव।

बचपन मे अर्थशास्त्र का मांग और आपूर्ति सिद्धांत पढ़ते समय एक चर्चा हुई थी कि काफी की कीमत यदि बढ जाए तो उसका प्रभाव यह होता है कि चाय की मांग बढ़ जाएगी लेकिन यदि नमक की कीमत बढ़ जाये तो उसकी मांग पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ेगा।

पृष्ठभूमि लगता है कुछ बड़ी हो गई परंतु मैं आज जिस बात की ओर ध्यानाकृष्ट करना चाहता हूँ वह यह है कि चिकित्सा क्षेत्र में किस प्रकार साइड इफ़ेक्ट वाली दवाओं का प्रचलन बढ़ा है। मेरी डाइबिटीज का इलाज करने वाले चिकित्सक ने एक बार नियमित दवाओं से इतर एक दवा पर्चे पर लिख दी। दवा लेकर घर आया तो स्वभाव के अनुसार नाम,मेन्युफैक्चरिंग, एक्सपायरी डेट आदि चैक की।

इस स्वभाव के कारण एक बार बहुत बड़ी विपत्ति टल गई थी। छोटे बेटे को बचपन मे बुखार आया। डॉक्टर ने कालपोल और कुछ दवा लिख दी। केमिस्ट ने कालपोल की जगह कॉम्पोज दे दी। मैंने तुरन्त देखा और केमिस्ट को बोला कॉम्पोज तो नींद की दवा है। वह बोला अरे मैं समझ नही पाया। पर सोचिए मैंने देखा नही होता या किसी और से दवा मंगवा कर घर भिजवा दी होती (जैसा कि आफिस में काम करने वाले अक्सर करते हैं ) और दिन में तीन बार कॉम्पोज बच्चे को दे दी होती तो साइड इफ़ेक्ट क्या होता इसकी कल्पना नही की जा सकती।

हां, तो जब मैंने देखा कि डाइबिटीज के चिकित्सक ने कोई अजीब सी दवा लिख दी है तो मैंने उसके बारे में पड़ताल की तो पता लगा कि वह मलेरिया की दवा है। मुझे आश्चर्य मिश्रित क्रोध आया। उस दवा को मैंने नही खाया।

गुस्सा तो आ ही रहा था। परन्तु मुझे गुरुओं ने सिखाया है कि क्रोध आने की दशा में कोई निर्णय तुरन्त नही करना चाहिए। कुछ समय शांत रहने से मस्तिष्क में आई अनर्गल बातें समाप्त हो जाती हैं और वह बच जाती हैं जिन के बारे में शिकायत करना जरूरी होता है।

दूसरे दिन मैं डाक्टर साहब के पास गया, और बड़ी विनम्रतापूर्वक (यदि तुरन्त जाता तो शायद विनम्रता नही होती) पूछा। उन्होनें स्वीकार किया कि यह दवा मलेरिया की है लेकिन इस का साइड इफ़ेक्ट यह है कि यह सुगर लेवल कम करती है। इसलिये आप को दी है। मुझे यह बात हज़म नही हुई। यदि ऐसा था भी तो मुझे विश्वास में ले कर करना चाहिए था।

उनके पास के केमिस्ट से इस बारे में चर्चा की तो उसने न जाने कितने उदाहरण दे दिए। खांसी के सीरप को लोग शराब का नशा छुड़ाने के लिये ले रहे हैं, दिल के रोग की कोई दवा है जिस का साइड इफ़ेक्ट है कि उससे बाल उग आते हैं तो दिल के रोगी कम और गंजे लोग उस दवा का ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं। अर्थात साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव को अप्रत्याशित अनुकूल प्रभाव के रूप में भी देखा जा रहा है।

मैं इस किसी भी बात का समर्थन नही करता, इसीलिए दवाओं के नाम स्पष्ट नही किये हैं परंतु ऐसा हो रहा है यह सत्य है, यह कहां तक सही है, गलत है, सैद्धांतिक है या सिद्धान्तों के विरुद्ध है, ऐसे प्रयोग किये जाने चाहिए या नहीं, इसका निर्णय सुधी पाठकों पर छोड़ते हैं।

इस आलेख के साइड इफ़ेक्ट के बारे में आपके विचारों का स्वागत रहेगा।

-सर्वज्ञ शेखर

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