सप्ताहांत: मनोबल और सम्मान की आड़ में
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में मानवता को शर्मसार करने वाला हिंसा का जो नंगा नाच हुआ उसने अंतरराष्ट्रीय जगत में हमारे देश की ख्याति को बहुत क्षति पहुंचाई है। दंगाइयों को किस ने उकसाया, किसने नहीं उकसाया, कौन जिम्मेवार है कौन नहीं, यह सब तो जाँच का विषय है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह सब पूर्वनियोजित था और ट्रंप व अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए किया गया।
लेकिन सबसे दुखद बात यह रही कि दो दिनों तक दंगों को होने दिया गया। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की या नहीं करने दी गई। यही कारण था कि 38 निर्दोष आम नागरिकों के साथ पुलिस का एक हेड कांस्टेबल शहीद हो गया, डी सी पी सहित सैंकड़ों पुलिसकर्मी व अन्य लोग हताहत हो गए। पुलिस की अक्षमता का ही यह नतीजा था कि पुलिस कमिश्नर के बजाय एन एस ए अजीत डोभाल को दिल्ली में शांति की कमान संभालनी पड़ी। यदि दिल्ली पुलिस ने कुछ किया होता या पुलिस पर विश्वास होता तो डोभाल जी को मैदान में आना ही नहीं पड़ता। 1984 में भी यही आरोप लगा था कि पुलिस ने दंगाइयों को रोका नहीं और हिंसा को होने दिया। यही इस बार भी हुआ। सारे वीडियो, सारी सूचनाएँ और सारे मीडिया वाले चीख- चीख कर इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि यदि पर्याप्त पुलिसबल होता और पुलिस ने थोड़ी सी भी सख्ती दिखाई होती तो दिल्ली में यह मंजर नहीं हुआ होता। इसी लिए माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि दिल्ली को एक बार फिर 1984 नहीं बनने देंगे।
परन्तु इस बात को मानने को कुछ लोग तैयार ही नहीं हैं। यहाँ तक कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी रोका जा रहा है कि पुलिस के बारे में कुछ न कहें। 26 फरवरी को दिल्ली में हिंसा की घटनाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट के माननीय जस्टिस जोसेफ ने कहा कि अगर पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई की होती तो ये रुक सकता था। उन्होंने पुलिस सुधार के बारे में प्रकाश सिंह के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वह फैसला लागू नहीं हुआ। उसमें पुलिस की स्वयत्तता के दिशानिर्देश हैं। इन टिप्पणियों पर केन्द्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस का मनोबल कम करने वाली टिप्पणियां कोर्ट को नहीं करनी चाहिए। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आग्रह किया कि कोर्ट हिंसा के बारे में कोई टिप्पणी न करे यह ठीक नहीं रहेगा। लेकिन जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वह संस्था और संविधान के प्रति उत्तरदायी हैं और अगर वे नहीं कहेंगे तो अपने कर्तव्य में विफल होंगे। इसके बाद जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हिंसा में 13 लोगों की जाने गईं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। तभी किसी ने कोर्ट को बताया कि 20 लोग मरे हैं।
मनोबल गिरने और सम्मान को ठेस पहुंचने की आड़ में हम आखिर कब तक अपनी कमजोरियों को छिपाते रहेंगे। पुलिस के जवानों व वीर सैनिकों का सभी आदर व सम्मान करते हैं। पुलिस या सेना की प्रशासनिक अव्यवस्थाओं की ओर इंगित करना और उनमें सुधार की बात करने का मतलब जवानों के पराक्रम पर प्रश्नचिन्ह नहीं बल्कि उनके पराक्रम को समुचित सम्मान प्रदान करने, उनको असमय होने वाली मौतों से बचाने की संभावनाओं को ढूंढना है। दुर्दम्य इलाकों में तैनात सेना के जवानों को मिलने वाली रसद व अन्य सुविधाओं के बारे में सी ए जी की रिपोर्ट में बहुत कुछ कहा गया है। पुलिस सुधार की चर्चाएं भी चलती रहती हैं। इन चर्चाओं का मतलब यह तो नहीं कि कोई जवानों के मनोबल को ठेस पहुंचाना चाहता है वरन इन बातों का उद्देश्य हिंसक परिस्थितियों में जवानों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करके जानमाल की और अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
Read in English
Under the Guise of Morale and Respect
The orgy of violence shaming humanity in Delhi during US President Trump’s visit to India has damaged our country’s reputation in the international world. Who instigated the rioters, who did not incite, who is responsible, who is not responsible, all this is a matter of investigation, but there is no doubt that all this was pre-planned and done to attract the attention of Trump and international media.
But the saddest thing is that the riots were allowed to happen for two days. The police did not take any action or were allowed to take action. This was the reason that a head constable of the police along with 38 innocent civilians were martyred, hundreds of policemen and others including the DCP were killed. The result of the incompetence of the police was that instead of the Commissioner of Police, NSA Ajit Doval had to take command of peace in Delhi. If the Delhi Police had done anything or believed the police, then Doval ji would not have to come to the field. The same allegation was made in 1984 that the police did not stop the rioters and let the violence take place. The same thing happened this time. All the videos, all the information and all the media are screaming, confirming that if there would have been enough police force and the police had shown even a little bit of toughness then this would not have happened in Delhi. That is why the honorable Delhi High Court had to remark that Delhi will not be allowed to become 1984 once again.
But some people are not ready to accept this. Even the Honorable Supreme Court is being stopped not to say anything about the police. On 26 February, while hearing the incidents of violence in Delhi, the Honorable Justice Joseph of the Supreme Court said that if the police had acted promptly, it could have stopped. He cited Prakash Singh’s decision regarding police reform, saying that that decision did not apply. It has guidelines for police autonomy. Solicitor General Tushar Mehta, appearing for the Central Government on these comments, said that the court should not make comments which reduce the morale of the police. Solicitor General Tushar Mehta urged that the court should not make any comment about the violence. But Justice Joseph said that he is responsible for the institution and the constitution and will fail in his duty if he says no. After this, Justice Joseph said that 13 people were killed in the violence, which is unfortunate. Then someone told the court that 20 people have died.
How long will we keep hiding our weaknesses under the guise of falling morale and hurting respect. We all respect and respect the police personnel and the brave soldiers. Pointing to the administrative dislocations of the police or the army and talking about their improvement is not a question mark on the might of the jawans, but rather to give due respect to their might, to protect them from untimely deaths. A lot has been said in the CAG report about the logistics and other facilities available to the army personnel deployed in the refractory areas. Discussions of police reform also go on. These discussions do not mean that anyone wants to hurt the morale of the jawans, but these things are aimed at providing more autonomy to the soldiers in violent situations and to ensure their safety.