खाद्य मिलावट: कमजोर कानून, मजबूत अपराधी
सेंटर फार साइंस एंड एनवॉयरामेंट (सी एस ई) ने शहद में चीनी की चाशनी की मिलावट का खुलासा करके चोंका दिया है। शहद को औषधि के रूप में हम सभी प्रयोग करते हैं। आजकल कोरोना से बचने के लिए भी कुछ अन्य दवाओं के साथ शहद को खाया जा रहा है। परँतु जब शहद में चीनी मिली होगी तो वह लाभ की जगह कितना नुकसान करेगा इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती। जो लोग डाइबिटिक हैं उनका सुगर लेवल बढ़ जाएगा व चीनी के अधिक प्रयोग से होने वाली अन्य बीमारियों को भी यह मिलावटी शहद बढ़ा देगा।
सी एस ई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने बताया कि भारतीय बाजारों में बिक रहे शहद के लगभग सभी ब्रांडों में जबरदस्त तरीके से शुगर सिरप की मिलावट हो रही है। सुनीता नारायण का कहना है कि शहद में शुगर सिरप की मिलावट खाद्य धोखाधड़ी (फ़ूड फ्रॉड) है।
संगठन का कहना है कि यह रिपोर्ट भारत और जर्मनी की प्रयोगशाला में हुए अध्ययनों पर आधारित है। गहरी पड़ताल बताती है कि भारत के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद में जबरदस्त मिलावट की जा रही है। 77 फीसदी नमूनों में शुगर सिरप की मिलावट पाई गई है।
खाद्य पदार्थो में मिलावट अक्षम्य अपराध है, क्योंकि इससे जिंदगी खतरे में आ जाती है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार के लिए एक एडवायजरी जारी की जिसमे कहा गया कि अगर दूध और दूध से बने प्रोडक्ट में मिलावट पर लगाम नहीं लगाई गई तो साल 2025 तक देश की करीब 87 फीसदी आबादी कैंसर की चपेट में होगी। अच्छे ब्रांडों पर भरोसा करके लोग महंगा सामान खरीदते हैं। यह ग्राहकों के साथ धोखा भी है। खाद्य पदार्थो में मिलावट करने वाले इतने संवेदनहीन हैं कि उन्हें किसी के जीवन की चिंता ही नही है। जब ग्राहक मुँह मांगे दाम देने को तैयार है तो फिर मिलावट क्यों? दवाएँ मिलावटी आ रही हैं, तो मरीजों को लाभ कैसे होगा, मसाले मिलावटी आ रहे हैं जो कैंसर जैसे रोग उत्पन्न कर रहे हैं, सब्जियों, फलों में केमिकल व रंगों का प्रयोग किया जा रहा है। दालों में भी मिलावट है। ऐसा लगता है कि असली कुछ है ही नहीं। ऐसे अपराधियों को सख्त से सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए। परँतु कानून उतने पर्याप्त नहीं है।
मिलावट रोकने के लिए कानून केंद्र सरकार बनाती है, लेकिन पालन राज्य की एजेंसियों को करवाना होता है। राज्य का खाद्य विभाग, नगर निगम, पुलिस, एफएसएसएआई का जो राज्य कार्यालय है, उनके जिम्मे कानून का अनुपालन करवाना होता है।
भारत में खाद्य 2006 में सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 लाया गया। इसे 2011 में लागू किया गया। इस अधिनियम के आने के बाद पिछले अनेक अधिनियम- खाद्य अपमिश्रण अधिनियम 1954, मिलावट निरोधक कानून 1954, फल उत्पादन आदेश 1955, मांस उत्पादन आदेश 1973, दूध और दुग्ध उत्पादन कानून 1992 को निरस्त कर दिया गया। ऐसा करने से प्रभावी ढंग से कानून को लागू करने में मदद मिलने की आशा थी।
2006 के अधिनियम के अंतर्गत ‘फूड सिक्योरिटी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया का गठन 2008 में किया गया। इस निकाय का काम है खाद्य सुरक्षा का नियमन तथा देखरेख व जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा को बढ़ावा देना। परँतु केन्द्र व राज्य सरकारों में समन्वय के अभाव, कानूनी कमजोरी, और भ्रष्टाचार के कारण अपराधी मजबूत होते जा रहे हैं। उनपर कोई लगाम नहीं है।
– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार