एक नज़र चुनाव परिणामों पर : जरा हट के
11 अप्रैल से 40 दिनों के लिए देश में चल रहे माहौल और एग्जिट पोल परिणामों से यह तो लग रहा था कि मोदी जी के नेतृत्व में एन डी ए की सरकार पुनः बनने वाली है। परंतु जिस तरह के परिणाम आये हैं उनकी आशा मोदी-शाह को भी नही होगी और न ऐसी आशंका किसी विपक्षी नेता को। इन परिणामों ने 2014 की मोदी लहर को भी पीछे छोड़ दिया। इन परिणामों को बिना किसी किंतु परन्तु के स्वीकार करना चाहिए। मोदी जी और उनकी पूरी टीम को बधाई।
इस शानदार सफलता का पूरा श्रेय जाता है केवल और केवल अमित शाह को जिनकी रणनीति के आगे विपक्ष की सारी योजनाएं ध्वस्त हो गईं। मोदी जी ने तो उनके बनाये हुए कार्यक्रम को पूरी मेहनत से अमलीजामा पहनाया। कहां किस प्रत्याशी को खड़ा करना है, कितनी रैली कहां करनी हैं, सब कुछ शाह का तय किया हुआ था। जिस प्रकार छत्तीस गढ़ में सारे संसद सदस्यों का टिकट काट कर नए लोगों को दिया गया, यह उनकी जोखिम भरी रणनीति का हिस्सा था। उन के कुछ फैसलों से बहुत लोगों को नाराजी भी हुई पर उसकी उन्होंने परवाह नही की। दूसरी ओर अपने ईगो को एक ओर रख कर कुछ दलों और नखरीले नेताओं को मनाया भी। कोई महत्वपूर्ण नेता जब भी नाराजी दिखाता उससे वह स्वयम मिले और समझा बुझा कर शांत किया। उद्धव ठाकरे रामविलास पासवान और गिर्राज सिंह इसके कुछ उदाहरण हैं।
चुनाव परिणामों से कुछ महत्वपूर्ण संकेत साफ मिले। पहला, फुटबॉल और हॉकी के खेल में एक रणनीति बनाई जाती है कि विपक्षी टीम के खतरनाक खिलाड़ी पर नज़र रखने के लिए अपनी टीम के कुछ खिलाड़ियों को लगा दिया जाता है। वह उसे घेरे रखते हैं और आगे नही बढ़ने देते। इसी प्रकार अमित शाह ने विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं की ऐसी घेराबंदी की वे हार गए।
दूसरा, यह कि जनता ने जाति, धर्म, क्षेत्र वाद को छोड़ कर स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में अंतर करना सीख लिया है। यही कारण है कि कोंग्रेस शाषित राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब और कर्नाटक में भी भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। नही तो यह माना जा रहा था कि इन राज्यों में तो कोंग्रेस अच्छा प्रदर्शन करेगी। राजस्थान विधानसभा के चुनावों में एक नारा खूब चला था ‘रानी तेरी खैर नही, मोदी तुझसे वैर नही’। इसका मतलब यही था कि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े और लोकसभा में राष्ट्रीय मुद्दे मष्तिष्क में रहे।
तीसरा, इन चुनावों की तस्वीर राष्ट्रपति प्रणाली जैसी बन कर उभरी। पूरा चुनाव मोदी और नो मोदी था। मोदी जी ने सभाओं में कहा भी कि आपलोग कमल के फूल पर बटन दबाओगे तो वोट सीधा मोदी के खाते में ही आएगा।
चौथा, सपा बसपा के मेलजोल क्यों फेल हुआ यह राजनीति के विश्लेषकों के लिये पहेली बना रहेगा। बहुत कम एग्जिट पोल इस गठबंधन को कमजोर मान रहे थे। यू पी के चीफ मिनिस्टर योगी जी यह तो कहते थे कि हम 73 से 74 हो जाएंगे पर मोदी शाह की जोड़ी को यह आशंका थी कि यहां शायद गठबंधन कुछ नुकसान कर सकता है, इसी भरपाई के लिए बंगाल की एक एक सीट के लिए युद्ध सा हो रहा था।
पांचवां, इस बार लगभग सारे एग्जिट पोल सही सिद्ध हुए। चैनलों के लिए खुश होने का समय है।
कौंन से मुद्दों पर जीत मिली, कौन सों पर हार, हार जीत के लिए कौन जिम्मेदार है, कौन नहीं, अब इन विषयों पर चर्चाएं चलेंगी। पर जो है वह सबके सामने है, दीवार पर लिखा आराम से पढ़ा जा सकता है।
– सर्वज्ञ शेखर