सुनो सुनो, सब सुनो सुनो
सुनो सुनो
सब सुनो सुनो
मैं क्या कहती, सुनो सुनो
सूरज उग आया है कब का,
हुआ समय जगने का सब का।
दिनकर की बिखरी है लालिमा,
हो गई ओझल निशा कालिमा।
शीतल मंद समीर बह रहा,
नदी में कलकल शोर हो रहा।
गा मांझी ने मधुर मल्हार,
यात्री उतारे नदिया पार।
हुई सुहानी ऐसी भोर,
चहका कलरव चारों ओर।
पुष्पित बगिया सुरभित फूल,
वातावरण हुआ अनुकूल।
सूर्यनमस्कार, प्राणायाम,
मात पिता को करो प्रणाम।
नई ऊर्जा,नई आशा से,
शुरू करो दैनंदिन काम।
हॉकर ने डाला अखबार,
प्रभात फेरी आई द्वार।
ले कुदाल फावड़ा झोली में,
श्रमिक चल दिये टोली में।
शहर जाग गया,देश जाग गया,
सारा आलस दूर भाग गया।
आ गई बस उड़ाती धूल,
चुन्नू मुन्नू गए स्कूल।
जागो देर तक सोने वालो,
सुबह का मौका खोने वालो।
उठो उठो उद्यान में जाओ,
योग करो, ऊर्जा जगाओ।
सभी काम पर जाओ अपने,
करो पूर्ण सुनहरे सपने।
पढ़ो लिखो और गुनो,
सुनो सुनो
सब सुनो सुनो,
मैं क्या कहती, सुनो सुनो।
– सर्वज्ञ शेखर