सप्ताहान्त – 21 जुलाई, 2019

रिमझिम फुहारों के साथ 17 जुलाई से पवित्र श्रावण मास के प्रारम्भ होते ही हरे भरे तीज त्योहारों की बहार आ गई है। वातावरण में गर्मी से मुक्ति पा कर हंसी खुशी व मादकता का भान हो रहा है।

इसी के साथ ही प्रारम्भ हो गई है कांवड़ यात्रा भी। कांवर या कांवड़ का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है। ब्रह्म में रमना या कांधे पर धारण करने के कारण कांवर कहा जाता है । समुद्र मंथन के समय शिवजी ने विषपान किया था इसलिये विष के ताप को शांत करने के लिए वैसे तो पूरे वर्ष उन का जलाभिषेक होता है लेकिन श्रावण मास शिव जी को बहुत प्रिय है इसलिए इस मास में उन्हें प्रसन्न करके अपनी मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं । कहा जाता है कि श्रावण मास में भगवान शिव अपनी स्वसुराल हरिद्वार में वास करते हैं, इन दिनों विष्णु जी शयन पर होते हैं, इसलिये हरिद्वार से शिव जी ही त्रिलोक का प्रबंधन करते हैं। अतः उनके भक्त दर्शन करने के लिए हरिद्वार जाते हैं।

कांवड़ यात्रा के बारे में एक मान्यता यह भी है कि भगवान परशुराम पृथ्वी विजय के बाद जब मयराष्ट्र (मेरठ) से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नामक स्थान पर विश्राम किया वहां पर शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पत्थर लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंचे।
यह सुन कर पत्थर रोने लगे,वह गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वह ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा। हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया।उन पत्थरों का गंगाजल से अभिषेक करने के लिए कांवर में हरिद्वार से गंगाजल लाया जाता है, इसप्रकार कांवड़ यात्रा की शुरूआत हुई।

रावण शिव जी का अनन्य भक्त था और उसने असाध्य तप करके शिवजी से अनेक सिद्धियां प्राप्त की थीं। कहा जाता है कि सबसे पहला कावड़िया रावण ही था।

भगवान राम ने भी शिव जी को प्रसन्न करने के लिये कांवड़ चढ़ाई थी । श्रावण मास को मुख्यतः देवों के देव महादेव शिव की पूजा-आराधना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। भगवान शिव को आराध्य मानकर भक्त श्रावण मास में पूरे मनोयोग से जप-तप और आराधना करते हैं।परन्तु शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही भगवान राम की पूजा भी उतना ही महत्व रखती है जितनी की शिव पूजा।

इसीलिए श्रावण मास में जगह जगह रामचरित मानस का पाठ भी कराया जाता है । भगवान शिव, भगवान राम को और भगवान राम, भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हैं। रामचरितमानस के पाठ से भगवान राम की आराधना तो होती ही है साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते है। भगवान राम की पूजा के बिना शिव पूजा अधूरी रहती है और बिना शिव पूजा के राम पूजा अधूरी है। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव ने हनुमान जी का रूप रख कर रामजी की सेवा की व रावण से युद्ध में सहायता प्रदान की।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं –

लिंग थाप कर विधिवत पूजा, शिव समान मोही और न दूजा।।

अर्थात,भगवान राम का कहना है कि भगवान शिव के समान मुझे कोई दूसरा प्रिय नही है, शिव मेरे आराध्य हैं

कांवड़ यात्रा के दौरान सभी धर्मावलम्बी शिवभक्तों का रास्ते भर स्वागत करते हैं। प्रशासन भी उनकी सुख सुविधाओं का पूरा ध्यान रखता है।परन्तु यात्रा का स्वरूप व्यापक हो गया है। इसमें असामाजिक तत्व शामिल हो कर कभी कभी कुछ अप्रिय स्थिति उतपन्न कर देते हैं। राह चलते लोगों को भी बहुत असुविधाएं होती हैं, इन सबसे बचा जाना चाहिए।

सर्वज्ञ शेखर

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