कोविड से भी ज्यादा भीषण वायु प्रदूषण

smog air pollution

हमारे देश में बढ़ते हुए वायु प्रदूषण व उसके दुष्प्रभाव ने एक बार फिर चिंतित कर दिया है। एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट (लैंसेट प्लेटनरी हेल्थ रिपोर्ट) ने खुलासा किया है कि सिर्फ वायु प्रदूषण से वर्ष 2019 में 16.7 लाख भारतीयों की मौत हो चुकी है। यह कुल मौतों का 18 फीसदी है। हालांकि सरकारें प्रदूषण से लड़ने के लिए तमाम तरह की योजनाओं और कार्यक्रमों की बातें कहती हैं, पर देश में खतरनाक तरीके से बढ़ते वायु प्रदूषण को रोका नहीं जा सका है व इससे जान जाने का सिलसिला लगातार जारी है।यह रिपोर्ट 21 दिसंबर को ही जारी की गई है।

थोड़ा संतोष की बात यह है कि भारतीयों ने अपने घरों में सफाई व धुंए पर नियंत्रण किया है और घरों के अंदर वायु प्रदूषण बहुत कम हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक घर के अंदर या भीतरी वायु प्रदूषण से कम मौतें हो रही हैं। घरों में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 64 प्रतिशत की कमी आई है। दूसरी तरफ बाहरी वायु प्रदूषण या परिवेशीय वायु प्रदूषण से ज्यादा मौते हो रही हैं। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि इसने कोविड की तुलना में 10 गुना अधिक जानें ली हैं। वायु प्रदूषण के कारण होने वाली फेफड़ों की बीमारियों में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी 36.6 फीसदी रही। अध्ययन के अनुसार, “बाहरी परिवेश में वायु प्रदूषण से मृत्यु दर इस अवधि में 115 फीसदी बढ़ गई है।”

वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में धुंध छा जाती है। धुंध (smog) दो शब्दों के मेल से बनी है – धुंआ(Smoke) और कोहरा (Fog)। पानी के कणों और धुएं में उपस्थित कार्बन के कणों के मिश्रित होने से धुंध बनती है और यह सर्दी के मौसम में अधिक हो जाती है क्योंकि उस समय कोहरे में पानी के कण हवा में होते हैं और कार्बन के कण उनमें मिश्रित हो जाते हैं। धुंध एक तरह का वायुप्रदूषण ही होती है जो दृश्यता को कम कर देती है। धुंध की समस्या उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ धुआँ पैदा करने वाले कारखाने लगे होते हैं। जिस कारण प्रदूषण ज्यादा होता है। शहरों में यह समस्या इसलिए अधिक होती है क्योंकि वहां औद्योगिक काम अधिक होता है, वहां पर फैक्ट्रियों, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ, जहरीले कण, राख आदि जब कोहरे के सम्पर्क में आते हैं तो यहाँ से धुँध बनती है।

ऐसे में प्रदूषण के साथ-साथ लोगों को धुँध की समस्या से भी दो चार होना पड़ता है। यह पर्यावरण के साथ-साथ हम मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं है। दिवाली के बाद से ताजनगरी आगरा की हवा में भी लगातार प्रदूषण का जहर घुल रहा है। धुंध गहराने के साथ प्रदूषण तत्वों की मौजूदगी के कारण स्मॉग से लोगों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक शोध के अनुसार छोटे बच्चों विशेषकर कन्याओं को फेफड़े में इंफेक्शन अधिक होता है।

इस स्थिति में दो बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। पहली तो यह कि वायु प्रदूषण को कैसे रोका जाए या कैसे न होने दिया जाए या कैसे कम किया जाए। दूसरी वायु प्रदूषण से कैसे बचा जाए। इसे न होने देना तो संभव नहीं पर निरोधात्मक उपाय करके कम अवश्य किया जा सकता है। जैसे कारखानों में धुएँ की मात्रा कम हो, सौर ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग, सड़कों पर वाहनों की संख्या कम हो, जो वाहन में उनमें ईधन ऐसा हो जो प्रदूषण कम करे, सड़कों पर कूड़ा न जलाना, खेतों में पराली न जलाना आदि। बचाव के लिए मास्क लगाना, खुले में एक्सरसाइज न करना, धुंध के समय न टहलना आदि। अपनी सुरक्षा अपने हाथ है।

– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार

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