सप्ताहान्त
#स्वराज्य_टाइम्स 11 अगस्त 2019
यह सप्ताह विविधताओं से परिपूर्ण रहा। सप्ताह के पहले ही दिन सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कश्मीर से धारा 370 हटाने की घोषणा की। इसी दिन राज्य सभा ने बिल को पास कर दिया,मंगलवार को लोकसभा ने पास किया और बुधवार को राष्ट्रपति महोदय ने हस्ताक्षर भी कर दिए। इसी सप्ताह पूर्व विदेशमंत्री सुषमा स्वराज का दुःखद निधन हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर प्रतिदिन सुनवाई शुरू कर दी। इधर आगरा में बच्चा चोरी की अफवाहों से स्थिति गम्भीर होती जा रही है।
परन्तु मुख्य विषय रहा धारा 370 से कश्मीर की आज़ादी का। भारतीय जनता पार्टी और उनके रणनीतिकारों की इस बात के लिये तो तारीफ करनी ही पड़ेगी कि वह जो भी कुछ करना चाहते हैं, कर डालते हैं। इसके अलावा दूसरों की कमजोरियों को पकड़ कर उन पर हावी होना, देश की जनता की भावनाओं पर नजर रखना व उनका श्रेय लाना भी इस टीम को बखूबी आता है।
चाहे नोटबन्दी हो या जी इस टी, सर्जिकल स्ट्राइक हो या धारा 370 को हटाना, झटपट कर डाला। इतना अवश्य है कि नोटबन्दी औऱ जी एस टी का निर्णय आधी अधूरी तैयारी के साथ किया था परन्तु धारा 370 हटाने से पूर्व हर क्षेत्र में पूरी तैयारी कर ली गई थी फिर चाहे वह कश्मीर में सुरक्षा घेराबन्दी हो या संसद में बिल को पास कराना। लोकसभा में तो बहुमत था ही,राज्यसभा में भी कुछ सदस्यों को भाजपा में शामिल करके या कुछ छोटे दलों से गुपचुप बातचीत करके उन्हें साथ ले लिया गया।
निश्चित रूप से राष्ट्रहित में और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। अब जो लोग यह कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों से पहले पूछना चाहिए था, उसकी कोई तुक नहीं है। यदि उनसे पहले पूछा भी जाता तो भी वह कौन से मानने वाले थे।
मैं बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हूँ। बैंक में प्रायः मीटिंग बहुत होती हैं, एक मीटिंग में वरिष्ठ अधिकारी आए। अपने उद्बोधन में उन्होंने किसी कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि, यह सम्भव नहीं कि इनकी शाखा में कोई कमी न हो परन्तु अच्छाइयां जब ज्यादा होती हैं तब कमियां छिप जाती हैं। जिस कालीन के ऊपर में खड़ा हूँ, उसके नीचे बहुत धूल और गंदगी होगी, परन्तु सुंदर कालीन ने उसे अपने नीचे छिपा रखा है।
उनका यह कथन बिल्कुल सत्य था और शाश्वत सत्य है। इस समय हमारे देश में ऐसा ही माहौल है। एक तो सत्तारूढ़ दल का भारी बहुमत, दूसरी ओर भावनाओं का ज्वार, तीसरा कमजोर, बिखरा और दिग्भ्रमित विपक्ष। कोई कुछ भी कहता रहे, सुनने वाला कोई नहीं। उन्नाव कांड, आर्थिक मंदी, अयोध्या मामले में मध्यस्थता प्रयासों की विफलता आदि सभी नैपथ्य में चले गए हैं।