सप्ताहान्त – 04 अगस्त, 2019
कैफे कॉफी डे (CCD) के मालिक वी जी सिद्धार्थ की असामयिक मौत ने एक बार फिर अवसाद का सामना न करने संबंधी कुछ नए प्रश्नों को जन्म दे दिया है। उनका शव उनके गायब होने के लगभग 30 घंटे के बाद मेंगलुरु के पास नेत्रावती नदी में मिला। उनके पास से एक पत्र भी मिला। सिद्धार्थ ने पत्र में लिखा कि वह कंपनी के लिए एक मुनाफे वाला बिजनेस मॉडल तैयार नहीं कर पाए। उन्होंने कंपनी को हुए नुकसान के लिए माफी भी मांगी। इस पत्र में उन्होंने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि मैंने इसे सबकुछ दे दिया। मैं उन सभी लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के लिए माफी मांगना चाहता हूं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया।
सिद्धार्थ ने कहा कि उन्होंने लंबे समय तक लड़ाई लड़ी लेकिन कि आज मैं हिम्मत हार रहा हूं क्योंकि मैं निजी इक्विटी साझेदारों में से एक की तरफ से शेयर वापस खरीदे जाने का और दबाव नहीं झेल सकता हूं। एक लेन-देन जो मैंने छह माह पहले एक दोस्त से बड़ी मात्रा में धन राशि उधार लेकर आंशिक तौर पर पूरा किया था। उन्होंने कहा कि अन्य कर्जदाताओं की तरफ से अत्याधिक दबाव ने मुझे स्थिति के आगे झुक जाने पर मजबूर किया है।
सिद्धार्थ के कुछ तथाकथित संदेहास्पद लेनदेनों के बारे में ई डी ने भी पूछताछ की थी, उससे भी वह काफी तनाव में थे। तनाव और अवसाद से होने वाली हत्या और आत्महत्याओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। कर्ज और फसल डूबने से किसानों द्वारा आत्महत्या करने का क्रम तो रुका ही नही है,परिवारों के मुखिया द्वारा पूरे परिवार की हत्या करके स्वयं की आत्महत्या करने के समाचार भी लगातार आ रहे हैं।
गरीब किसान या छोटे व्यापारी बहुत कमजोर दिल के होते हैं। वह व्यावसायिक घाटे, पारिवारिक कलह या सरकारी जांच पड़ताल औऱ छापों आदि के तनाव को सहन नहीं कर पाते और अकाल काल को गले लगा लेते हैं। परन्तु बड़े उद्योगपति, कॉरपोरेट अधिकारी आदि इस प्रकार के अवसाद और तनावों को सहन करने में सक्षम होते हैं, कई तो बाकायदा इसका प्रशिक्षण या काउंसिलिंग कराते हैं।
यदि हम सकारात्मक वातावरण में रहे और सकारात्मक वातावरण न होने पर् उसका निर्माण कर् ले तो ऐसी दुखद घटनाओं को होने से रोका जा सकता है।माहौल का बहुत फर्क पडता है। जब हम किसी की शवयात्रा के दौरान शमशान घाट पर होते हैं तो संसार से विरक्ति, जीवन से निराशा के भाव मन में आने लगते हैं। यदि हम अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने जाते हैं तो वहां का माहौल देख कर मन दुखी होने लगता है, एसा महसूस होता है जेसे संसारमें दुख ही दुख है और कोई भी सुखी नहीं हैं। यदि हम जेल, कचहरी या अदालत मे जाते हैं तो प्रतीत होता है कि दुनिया अपराधियों से भरी पडी है। एसे ही यदि हम किसी शादी समारोह में या किसी होटल में किसी कार्यक्रम में होते हैं तो सारे दुखों को भूल कर नाचने लगते हैं। यह सब माहौल का ही असर है।
सकारात्मक माहौल का कितना फर्क पडता है इसके अनेक उदाहरण हैं। हाथी और घोडी की कहानियां आपने सुनी ही होंगीं, परंतु माहौल पर हो रही चर्चा के संदर्भ में वो प्रकरण समीचिन हैं और उनका यहां संक्षिप्त वर्णन प्रासंगिक ही होगा।
एक राजा की सेना का हाथी दलदल में गिर गया। बहुत कोशिश के उपरांत भी बाहर नहीं निकाला जा सका तो राज पंडित से उपाय करने को कहा गया। राजपंडित ने कहा जेसे माहौल में हाथी रहता था वेसा ही माहौल बनाइये, देखिये हाथी तुरंत बाहर आ जायेगा। एसा ही किया गया। चूंकि वह सेना का हाथी था, इस लिये युद्ध का माहौल बनाया गया। दुंदुभी बजाई गई, ढोल नगाडे वाले बुलाये, सैनिकों की पद्चाल कराई गई। हाथी को लगा कि युद्ध होने वाला है, सैनिक आ रहे हैं, सेनापति मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। उसमे अतिरिक्त जोशका संचार हो गया। उसने बाहर आने के लिये अपनी ओर से भी जोर लगाया और बाहर आ गया।
घोड़ी वाला प्रकरण भी व्यंग्य के रूप में काफी प्रचलित है कि तांगेवाला घोडी के आगे थोडी थोडी देर बाद नाचता था तभी वो आगे चलती थी। तांगे वाले से जब इसका कारण पूछा गया तो बोला कि ये बारात के दूल्हे की घोडी है, इसके सामने बारात का माहौल बनाना पड़ता है, तभी यह चलती है। यद्यपि यह व्यंग्य है, परंतु इसमे जो संदेश छिपा है वो यही है कि माहौल का बहुत ज्यादा असर होता है।
– सर्वज्ञ शेखर
#स्वराज्यटाइम्स_04अगस्त 2019