सप्ताहांत: रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय
महाभारत का एक प्रसंग अनायास ही स्मृति पटल पर आ गया। महाभारत की प्रचलित कथाओं में से एक के अनुसार युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण जब द्वारिका लौटने लगे तो भारी मन से पांडव अपने परिवार के साथ भगवान कृष्ण को नगर की सीमा तक विदा करने आए। सब की आँखों में आँसू थे। भगवान एक-एक करके अपने सभी स्नेहीजनों से मिल रहे थे। अंत में अपनी बुआ कुंती अर्थात पांडवों की माता से मिले।उन्होंने कुंती से कहा “बुआ आपने आज तक अपने लिए मुझसे कुछ नहीं मांगा। आज तो मांग लीजिए। मैं आपको कुछ देना चाहता हूं। “अश्रुपूरित नयनों से कुंती ने कहा “हे कृष्ण! अगर कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे दुख दे दो। मैं बहुत सारा दुख चाहती हूँ।”
यह सुनकर कृष्ण आश्चर्य में पड़ गए।उन्होंने पूछा “ऐसा क्यों बुआ, तुम्हें दुख क्यों चाहिए। तब कुंती ने उन्हें जवाब देते हुए कहा “जब जीवन में दुख रहता है तो तुम्हारा स्मरण भी रहता है। हर क्षण तुम याद आते हो। सुख में तो यदा-कदा ही तुम्हारी याद आती है। तुम याद आओगे तो मैं तुम्हारी पूजा और प्रार्थना भी कर सकूंगी।”
रहीम दास जी ने भी कहा है –
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय
कबीर दास जी के अनुसार –
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय
कोरोना महामारी ने सारे विश्व में जो दुख का वातावरण उत्पन्न किया है उसमें उपर्युक्त कथा व उक्तियाँ सामयिक व सार्थक सी प्रतीत हो रही हैं। कुंती की बात सही है, जितने समय लोग दुखी रहते हैं उतने समय तो कमसेकम भगवान को अवश्य याद करते हैं। कबीरदास भी कुंती की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहते हैं कि दुख में ईश्वर का सभी स्मरण करते हैं, सुख में कोई नहीं करता। यदि लोग सुख में भी प्रभु को याद करलें तो दुख होगा ही नहीं।
परँतु कोरोना का दुख कुछ ज्यादा ही हो गया है। दुख का होना ठीक है, परंतु इतना ज्यादा भी ठीक नहीं और इतनी ज्यादा जनहानि की कीमत पर तो बिलकुल नहीं। पूरे विश्व में एक लाख से ज्यादा मरीज कोरोना के काल ने लील लिए हैं। भारत में भी इन पँक्तियों के लिखे जाने तक 200 से ज्यादा लोगों की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है। इसीलिए रहीम दास जी यद्यपि विपदा का समर्थन तो करते हैं परंतु उन्होंने कहा है कि जो भी विपदा हो वो थोड़े दिन के लिए ही हो। इस दौरान यह मालूम हो जाता है कि हमारा हितैषी कौन है।
यही बात गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी श्री रामचरित मानस में कही है –
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
लगता है हित, अनहित सभी की परख बहुत हो ली। ईश्वर को भी त्राहिमाम त्राहिमाम खूब कर ली। हे कोरोना की विपदा अब तुम जाओ, विदा लो।
– सर्वज्ञ शेखर
🙏 Go corona Go…🙏