सप्ताहांत: ऐसी खुशी किस काम की
एक जनवरी को सुबह जब घर के दरवाजे को खोला तो सामने गोमाता अपने बछड़े के साथ खड़ी दिखाई दे गई।गोमाता के प्रातःकालीन दर्शन, वह भी नव वर्ष के पहले दिन, मन मस्तिष्क में अपार खुशी का संचार हो गया।इतनी प्रसन्नता हुई जैसे सारे संसार के सुख मिल गए हों। यह सत्य घटना है और इसका वर्णन केवल इस बात को रेखांकित करने के लिए किया है कि खुशी बाहर से नहीं मिलती, यह अपने अंदर से ही ढूढनी होती है। किस बात से आप खुश हो सकते हैं यह आपको ही तय करना है। खुशी के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि बाहर रहने वाले बेटे का फोन आने पर या माता-पिता से बात करके, पड़ोसी से तर्क-वितर्क करके, मित्र से बतिया कर या अपने अधीनस्थों को डांट कर ही खुशी मिले। खुशी तो अपने इर्द-गिर्द ही ढूंढनी होगी क्योंकि खुश तो आपको हर दिन, हर समय, हर पल रहना है।
मेरे पास एक नन्हा सा खरगोश है। मैं जब भी घर के मंदिर में पूजा करता हूँ, वह भी मेरे पास आ कर बैठ जाता है। इस लिए मैंने उसका नाम भगत राम रखा हुआ है। मैं जब खुश होना चाहता हूँ, अपने भगत राम से ही बात करता रहता हूँ। जो लोग ‘सब टी वी’ पर आने वाले सीरियल “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” देखते हैं, वह जानते हैं कि भिड़े को अपने स्कूटर सखा राम और पोपट लाल को अपने छाते से कितना प्यार है। वह इनसे बात करके ही खुश रहते हैं। मेरे एक साथी थे बैंक में। उन्होंने चपरासी छोटू का नाम अपने लिए किशन कन्हैया रख दिया था। उनका कहना था कि पूरे दिन मैं उसे किसी न किसी काम के लिए आवाज लगाता हूँ, मुझे उसे किशन कन्हैया कह कर पुकारने में बहुत खुशी मिलती है।
यह तो है आम लोगों की बात। जो हमारे राजनेता और राजनीतिक दल हैं उनकी खुशी की चाहत की तो बात ही कुछ और है। इन लोगों ने तो अपने इर्दगिर्द खुशियाँ ही खुशियाँ ढूंढ ली हैं। ऐसा लग रहा है कि देश में खुशी ही खुशी है। किसी को नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने में बहुत खुशी का अनुभव हो रहा है तो किसी को समर्थन में। किसी को प्रधानमंत्री मोदी की हर बात का विरोध करने में आनंद का अनुभव होता है तो किसी को हर विरोधी को पाकिस्तान भेजने की बात कहने में मजा आता है। किसी को स्कूटी के पीछे बिना हेलमेट के बैठने में खुशी हो रही है तो किसी को फैज अहमद फैज की कविताओं का समर्थन और विरोध में भी खुशी का आभास हो रहा है। महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह बनी भी नहीं पर अभी से खटपट शुरू हो गई है यह देख कर भी बहुत लोग खुश हैं।
कोटा में अबोध बच्चों का दुःखद निधन जैसी संवेदनशील घटना भी राजनीतिक खुशी का माध्यम बन गई है। गोरखपुर में बच्चों की मौत पर जिन लोगों को निंदा झेलनी पड़ी थी वह बहुत खुश हैं कि उन्हें कोटा में बदला लेने का मौका मिल रहा है। हम तो यह कामना करते हैं कि ऐसी खुशी किसी को न मिले जो संवेदनाओं का दाह संस्कार करके मिलती हो। ऐसी खुशी किस काम की।
– सर्वज्ञ शेखर
(स्वराज्य टाइम्स, 05 जनवरी, 2020)
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What use is such happiness
On the morning of January 1, when the door of the house was opened, Gomata was seen standing with her calf in front. Gomata’s early darshan, that too on the first day of the New Year, became a source of great joy in the mind. The joys of the world have been found. This is a true phenomenon and it is described only to underline that happiness does not come from outside, it has to be found from within. You have to decide what you can be happy with. One should not depend on others for happiness. It is not necessary to be happy only when the son of an outgoing son gets a call or talking to parents, arguing with a neighbor, talking to a friend or scolding his subordinates. You have to find happiness around you because you have to be happy every day, all the time, every moment.
I have a little rabbit. Whenever I do puja in the temple of the house, it also comes to me and sits down. That is why I named him Bhagat Ram. When I want to be happy, I keep talking to my Bhagat Ram. Those who watch the serial “Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah” on SAB TV know how much Bhide loves his scooter Sakha Ram and Popat Lal with his umbrella. He is happy only by talking to them. I had a colleague in the bank. He named the peon Chhotu as Kishan Kanhaiya for himself. He used to say that throughout the day I call him for some or the other work, I take great pleasure in calling him Kishan Kanhaiya.
This is a matter of common people. The desire of happiness of our politicians and political parties is something else. These people have found happiness around themselves. It seems that happiness is happiness in the country. Someone is feeling very happy to oppose the Citizenship Amendment Act and someone in support. If someone feels pleasure in opposing everything of Prime Minister Modi, then it is fun to talk about sending every opponent to Pakistan. If anyone is happy to sit behind the scooty without a helmet, then one is happy to support and oppose the poems of Faiz Ahmed Faiz. Even the Maharashtra government has not been fully formed, but many people are happy to see that a ruckus has already started.
Sensitive incidents like the sad demise of innocent children in Kota have also become a medium of political pleasure. Those who had to face condemnation on the death of children in Gorakhpur are very happy that they are getting a chance to take revenge in Kota. We wish that no one gets such happiness by cremating the senses. What is the use of such happiness?
– Sarwagya Shekhar