सप्ताहांत: एग्जिट पोल – मतदाता की नब्ज पर कमजोर पकड़
बिहार में हाल में संपन्न चुनावों में एग्जिट पोल की विफलता ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि आजकल मतदाता बहुत होशियार हो गया है और उसके मन की बात को उगलवाना आसान नहीं रह गया है। विशेषकर युवा व महिला मतदाताओं को समझना अब मुश्किल है। 07 नवंबर को मतदान का आखिरी चरण खत्म होते ही एग्जिट पोल की बाढ़ सी आ गई। हिंदी व अंग्रेजी के सभी चैनलों में अपनी सहायक ऐजंसियों के माध्यम से एक्जिट पोल बताने की होड़ सी लग गई। सभी अपने पोल को तेज व सटीक बता रहे थे। अधिकतर, या लगभग सभी चैनलों ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सरकार बनाते हुए दिखाया था। एक एग्जिट पोल में तो महागठबंधन को 180 सीटें तक बता दी गईं। लेकिन 10 नवंबर को जब असली परिणाम आए तो सभी एग्जिट पोल की हवा निकल गई। एन डी ऐ ने 125 सीटों पर पूर्ण बहुमत से विजय प्राप्त की। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ सीटों पर कम अंतर से हुई हार-जीत के कारण भी एग्जिट पोल गलत निकले। बिहार विधानसभा चुनाव में 40 सीटें ऐसी रहीं, जहां जीत-हार का अंतर 3500 से कम रहा। इन सीटों के बारे में एग्जिट पोल के लिए अनुमान लगाना बहुत मुश्किल था। इन 40 सीटों में 21 सीटें एनडीए ने जीतीं और 17 सीटें महागठबंधन ने। 11 सीटें तो ऐसी रहीं जहां जीत-हार का फैसला हजार वोटों से भी कम अंतर से हुआ।
2015 में पिछली बार भी बिहार के विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल सही सिद्ध नहीं हुए थे। तब भी ज्यादातर एग्जिट पोल में एनडीए की जीत की बात कही गयी थी लेकिन महागठबंधन ने दो-तिहाई बहुमत हासिल कर इसे झुठला दिया था।
एग्जिट पोल की विफलता के कारण कुछ भी रहे हों पर पिछले कुछ चुनावों से एग्जिट पोल परिणाम सही सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं। 2019 के एग्जिट पोल में हरियाणा में बीजेपी के पूर्ण बहुमत की भविष्यवाणी भी सही साबित नहीं हुई थी। कांग्रेस की करारी हार का अनुमान भी ग़लत साबित हुआ था। 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला बताया गया था लेकिन कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल ने बताया था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है। जब नतीजे सामने आए तो आम आदमी पार्टी कहीं सीन में नहीं थी। कांग्रेस की सरकार बन गयी।
अभी तो एग्जिट पोल जानने के लिए लोग इंतज़ार करते हैं। टेलीविजन पर ऐसे आँख गढ़ा कर बैठते हैं जैसे असली परिणाम आ रहे हों। परंतु यदि यही हाल रहा तो एग्जिट पोल से जनता व राजनीतिक दलों का विश्वास उठ जाएगा। इस विश्वास को कायम रखने के लिए एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों को अपनी पद्धति में कुछ तो बदलाव करना ही होगा। सैम्पल साइज बढ़ाना होगा, पूरी तरह वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने के साथ-साथ मतदाताओं की सामाजिक व जातिगत प्रतिबद्धता को समझना होगा। पिछली विफलताओं से कुछ तो सीख लेनी ही होगी, तभी एग्जिट पोल और एक्ज़ेक्ट पोल में साम्यता आ सकेगी।