सप्ताहांत: टी आर पी की आड़ में
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की टी आर पी की दुनिया में आजकल भूचाल आया हुआ है। जिनसे पूरी ईमानदारी और सच्चाई की अपेक्षा है वही संदेह के घेरे में आ रहे हैं। पता ही नहीं लग पा रहा कि कौन कितना सच बोल रहा है।
टी आर पी का मतलब है टेलिविजन रेटिंग पॉइंट। इसके माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि किसी टीवी चैनल या किसी शो को कितने लोगों ने कितने समय तक देखा। अर्थात कौन सा चैनल या कौन सा शो कितना लोकप्रिय है, उसे लोग कितना पसंद करते हैं। जिसकी जितनी ज्यादा टी आर पी, उसकी उतनी ज्यादा लोकप्रियता। अभी ब्रॉडकास्ट आडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया यानी कि BARC टी आर पी को मापने का काम करती है।
यद्यपि टी आर पी कोई वास्तविक नहीं बल्कि अनुमानित आंकड़ा होता है, फिर भी इसकी मान्यता बहुत है। माना जाता है कि जिस चैनल की जितनी ज्यादा लोकप्रियता यानी टी आर पी होती है, उसे ज्यादा विज्ञापन मिलते हैं। ज्यादा टी आर पी है तो चैनल विज्ञापनों को दिखाने की ज्यादा कीमत भी लेता है। कम टी आर पी होगी तब या तो विज्ञापनदाता उसमें रुचि नहीं दिखाएंगे या फिर कम कीमत में विज्ञापन देंगे। जिस चैनल की जितनी ज्यादा टीआरपी, उसकी उतनी ज्यादा कमाई होती है। इसीलिए ऐसे आरोप लग रहे हैं कि कुछ चेनलों ने पैसे दे कर अपनी टी आर पी बढ़ाई।
टी आर पी की सत्यता पर इसलिए भी भरोसा नहीं किया जा सकता कि देश में करोड़ों घरों में हर समय टेलीविजन चलते रहते हैं, उन सभी पर किसी खास समय में क्या देखा जा रहा है, इसे मापना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए सैंपलिंग का सहारा लिया जाता है। टी आर पी मापने वाली एजेंसी देश के अलग-अलग हिस्सों, आयु वर्ग, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिध्तव करने वाले सैंपलों को चुनते हैं। कुछ हजार घरों में एक खास उपकरण लगाया जाता है जिसे पीपल्स मीटर कहते हैं। पीपल्स मीटर के जरिए यह पता चलता है कि उस टीवी सेट पर कौन सा चैनल, प्रोग्राम या शो कितनी बार और कितने देर तक देखा जा रहा है। पीपल्स मीटर से जो जानकारी मिलती है, एजेंसी उसका विश्लेषण कर टी आर पी तय करती है।
मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने बताया कि देशभर में अलग-अलग जगहों पर 30 हजार बैरोमीटर लगाए गए हैं। मुंबई में इन मीटरों को लगाने का काम हंसा नाम की संस्था ने किया था। मुंबई पुलिस का दावा है कि हंसा के कुछ पुराने वर्करों ने जिन घरों में पीपल्स मीटर लगे थे, उनमें से कई घरों में जाकर वे लोगों से कहते थे कि आप 24 घंटे अपना टीवी चालू रखिए और फलां चैनल लगाकर रखिए। इसके लिए वे लोगों को पैसे भी देते थे। मुंबई पुलिस का दावा है कि अनपढ़ लोगों के घरों में भी अंग्रेजी के चैनल को चालू करवाकर रखा जाता था।
– सर्वज्ञ शेखर
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Under the guise of TRP
In the TRP world of electronic media, there is a trend nowadays. Those who expect complete honesty and truth are in the circle of doubt. I do not know who is telling the truth.
TRP stands for Television Rating Point. Through this, it is found out how long people watched a TV channel or a show. That is, which channel or which show is so popular, how much people like it. The more the TRP, the more its popularity. Currently, Broadcast Audience Research Council India ie BARC works to measure TRP.
Although TRP is not an actual but an approximate figure, it has a lot of validation. It is believed that the channel which has more popularity ie TRP gets more advertisements. If there is more TRP, then the channel also charges more for showing advertisements. If there is less TRP, then either advertisers will not show interest in it or they will advertise at a lower price. The higher the TRP, the higher the revenue of the channel. That is why there are allegations that some chains increased their TRP by giving money.
The truth of TRP also cannot be relied on because television is being run in crores of houses all the time in the country, it is not practical to measure what is being seen on all of them at any particular time. Hence sampling is resorted to. TRP measuring agencies select samples representing different parts of the country, age groups, urban and rural areas. A few thousand homes have a special device called a People’s Meter. Through the People’s Meter, it is known which channel, program or show is being watched on that TV set and for how long. The agency analyzes the information obtained from the People’s Meter and decides the TRP.
Mumbai Police Commissioner Parambir Singh said that 30,000 barometers have been installed at different places across the country. The installation of these meters in Mumbai was done by an organization named Hansa. The Mumbai Police claims that some of Hansa’s old workers used to go to many of the houses in which the People Meters were installed, and they used to tell people that you should keep your TV on for 24 hours and keep a fixed channel. For this, he also used to give money to people. The Mumbai Police claims that the English channel was kept operational even in the homes of illiterate people.