इन्हें जल दो, दो न जला
धरती सूखी,
नदिया सूखी,
सूखे ताल तलैया,
जल्दी आओ बरखा रानी,
कर दो छप छप छैया।
रूठ गया कलरव चिड़िया का,
छूट गई कौवे की काँव,
कुहू कुहू कोयल न बोले,
वीरान हुआ है पूरा गांव।
वर्षा ने सुखाया,
हमने दुखाया,
हरे-भरे वृक्षों का देखो,
क्या हाल है,
सबने बनाया।
यह कैसी मन्नत पूजन है,
बना दिया है कूड़ादान,
सिंचन पोषण छोड़ दिया,
यह कैसा इनका सम्मान।
इन्हें जल दो,
दो न जला,
तब ही सृष्टि का,
होगा भला।
हरा-भरा रखने से इनको,
होगी दूर सारी बला।
– सर्वज्ञ शेखर