हर्ष फायरिंग: एक सामंती कुप्रथा
नाम तो है हर्ष फायरिंग लेकिन हर्ष को विषाद और खुशी को मातम में बदल देने वाली हर्ष फायरिंग कड़े कानून और अकाल मौतों की घटनाओं के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। कहीं डांसर तो कहीं बेंडवालों, कहीं बारात देख रहे बच्चों और महिलाओं तो कहीं दूल्हा दुल्हन या उनके रिश्तेदारों को ही गोली लग जाती है। लोग घायल हो जाते हैं या मौत के मुँह में भी समा जाते हैं। हर्ष फायरिंग अब केवल बारातों तक ही सीमित नहीं रह गई है। जन्मदिन, शादी की वर्षगाँठ, विजय जुलूस, छठ पूजन, नए साल का जश्न, धार्मिक आयोजनों आदि आदि किसी भी खुशी के अवसर पर खुलेआम इसका भोंडा प्रदर्शन किया जा रहा है। इसके अलावा पहले यह गांवों तक ही सीमित थी परंतु अब शहरों, अभिजात्य वर्ग, यहाँ तक कि कानून बनाने वाले नेताओं को भी कोई परहेज नहीं रह गया है और फायरिंग को खुशी के इज़हार का माध्यम बना दिया गया है।
समाजविज्ञानियों के अनुसार हथियारों का प्रदर्शन सामंतवाद से प्रभावित है। शक्ति प्रदर्शन पुराने जमाने में जरूरी होता था। राजे रजवाड़ों के यहां शादी विवाह के मौकों पर प्रशिक्षित तलवार बाज आदि आते थे। शादी और खुशी के मौकों पर कई तरह के खेल खेले जाते थे। असलहों का प्रदर्शन किया जाता था। यह भी कहा जाता है कि लोगों को शादी की जानकारी देने के लिए भी तेज ढोल नगाड़े बजाए जाते थे, आतिशबाजी की जाती थी। बदलते समय के साथ तलवार की जगह दुनाली, तमंचे और बंदूकों ने ली। अब शादी विवाह के मौकों पर वे अपनी सामर्थ्य और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और गांव वाले, मुहल्ले वाले देखते हैं। सामंतीयुग में दूल्हा-दुलहन के परिवार वाले एक दूसरे से ज्यादा ताकतवर दिखने के लिए हवाई फायरिंग किया करते थे। जैसे ही समय बदला बाजारवाद आया। ऐसा लगा कि इन हथियारों का का चलन कम होगा, लेकिन यह और बढ़ गया।
उत्तर प्रदेश के कन्नौज में इसी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर रायफल से कई राउंड हर्ष फायरिंग करने वाले पांचों आरोपियों को इंदरगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया। पांचों युवकों का हर्ष फायरिंग करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। मेरठ में इसी माह के शुरू में नए साल के जश्न में क्राइम ब्रांच के सिपाही सौरभ यादव को गोली लगी थी। हाईवे स्थित होटल में नए साल की पूर्व संध्या पर तमंचे पर डिस्को चल रहा था। माना जा रहा है कि सिपाही को हर्ष फायरिंग में गोली लगी ।ऐसा भी कहा गया कि किसी विवाद में सिपाही के एक दोस्त ने उसे गोली मारी।
इसी प्रकार की पिछले कुछ माह की अन्य घटनाओं में 29 दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के ककराला इलाके में एक बरातघर में शादी के दौरान हर्ष फायरिंग के दौरान गोली लगने से एक युवक की मौत हो गई। इससे हड़कंप मच गया। सभी लोग खाना छोड़कर मौके से भाग गए। 13 दिसंबर 2020 को बिहार के भोजपुर जिले में हर्ष फायरिंग के दौरान गोली लगने से दो युवकों की मौत हो गई। 12 दिसंबर 2020 को मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के लहारची गांव में एक विवाह समारोह के दौरान की गई हर्ष फायरिंग से 12 वर्षीय एक लड़के की मौत हो गई। 24 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शादी समारोह में उस समय रंग में भंग पड़ गया जब हर्ष फायरिंग के दौरान दूल्हे के एक करीबी दोस्त को पेट में गोली लग गई।
यह तो कुछ उदाहरण हैं। ऐसी दस बीस नहीं बल्कि सैंकडों दुर्भाग्यशाली घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में घटित हो चुकी हैं। ऐसा नहीं है कि हर्ष फायरिंग को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। केंद्र सरकार ने शस्त्र संशोधन विधेयक 2019 को संसद से मंजूर करा लिया है। शस्त्र संशोधन विधेयक 2019 में हर्ष फायरिंग को अपराध घोषित करके फायरिंग करने वालों को दो साल की कैद और 1 लाख रुपये जुर्माने की भी प्रावधान किया गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने विधेयक पर चर्चा के दौरान बताया कि यह गलत धारणा है कि लाइसेंसी हथियारों से हर्ष फायरिंग में किसी की जान नहीं जाती। 2016 में उत्तर प्रदेश में 191, बिहार में 12 और झारखंड में 14 लोगों की जान लाइसेंसी हथियारों से की गई हर्ष फायरिंग में गई थी। कानून बन तो गया पर कानून का किसी को भय नहीं हैं। अधिकांश मामलों में घटना हो जाने के उपराँत कार्यवाही की गई है, घटना को होने से रोक पाने में कानून के रखवाले असमर्थ रहे हैं।
2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि शादी व अन्य उत्सवों में होने वाली हर्ष फायरिंग के दौरान कोई हादसा होता है तो इसके लिए शादी अथवा उत्सव के आयोजकों को भी जिम्मेदार माना जाएगा। यह बात एक पिता की ओर से दायर मुआवजा याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याची की नाबालिग बेटी की अप्रैल 2016 में घुड़चढ़ी के दौरान हर्ष फायरिंग में गोली लगने से मौत हो गई थी। जस्टिस विभू बाखरू ने कहा था कि कार्यक्रम व उत्सव आयोजक को तय करना होगा कि उसके मेहमान हर्ष फायरिंग नहीं करेंगे। अगर हर्ष फायरिंग की जाती है तो वह इसकी जानकारी पुलिस को देंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में कुछ न कुछ किया जाना चाहिए। अगर सरकार कोई दिशा-निर्देश नहीं बनाती है तब तक आयोजक को ही इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा। आप यह नहीं कह सकते कि हर्ष फायरिंग की आपको जानकारी नहीं थी या अपने रिश्तेदारों को हथियार लाने के लिए नहीं कहा था।
यह सही है कि असलाह धारकों को यदि कानून से भय नहीं है तो कार्यक्रम के आयोजकों को ही बचाव के लिए कुछ करना होगा। उन्हें इतनी हिम्मत करनी होगी कि कोई कितना भी प्रभावशाली या दबंग ही क्यों न हो, हथियारों के साथ प्रवेश ही न कर पाएँ। निमंत्रण पत्र पर भी हथियार सहित न आने का संदेश दिया जा सकता है। हर्ष फायरिंग करने वालों को हर हाल में हताश करना ही होगा।
– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार
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Joy Firing: A Feudal Malpractice
The name is Harsh firing, but Harsh firing, which turns Harsha into grief and happiness, is not taking the name of being reduced despite stringent laws and incidents of famine deaths. Somewhere the dancer, at some places the bendals, the children and women watching the procession, and at some places the bridegroom bride or their relatives are shot. People get injured or even die. Harsh firing is no longer limited to processions. Birthday, wedding anniversary, victory procession, Chhath Pujan, New Year celebration, religious events etc. are being performed openly on any happy occasion. Apart from this, earlier it was limited to villages, but now cities, aristocrats, even law-making leaders are left with no fear and firing has been made a means of expressing happiness.
According to sociologists the performance of weapons is influenced by feudalism. Demonstration of strength was necessary in the olden days. The Raje Rajwads used to come here trained on the occasions of marriage, sword sword etc. Many kinds of sports were played on occasions of marriage and happiness. Ashalas were performed. It is also said that in order to inform people about marriage, fast drums were played, fireworks were performed. With the changing times, the sword was replaced by Dunali, the gunman and the guns. Now on the occasions of marriage, they demonstrate their power and power and see villagers, villagers. In the feudal age, the groom and bride’s family used to do aerial firing to look more powerful than each other. As time changed marketism came. It seemed that the movement of these weapons would be less, but it increased.
Indergarh Police arrested the five accused of firing several rounds of joy from a rifle on the eve of this New Year in Kannauj, Uttar Pradesh. The video went viral on social media, firing the five youths with joy. In Meerut earlier this month, Saurabh Yadav, a soldier of the Crime Branch, was shot dead during the New Year celebration. On the eve of the New Year, a disco was running at the hotel on the highway. It is believed that the soldier was shot in Harsh firing. It was also said that in some dispute, a friend of the soldier shot him.
In other similar incidents in the last few months, on 29 December 2020, a young man was shot dead during a firing during a wedding at a barghar in Kakrala area of Badaun district of Uttar Pradesh. This stirred up. All the people left the food and fled from the spot. On 13 December 2020, two youths were shot dead during firing during Harsh firing in Bhojpur district of Bihar. On December 12, 2020, a 12-year-old boy died in Harsha firing during a wedding ceremony at Laharchi village in Rajgarh district of Madhya Pradesh. On 24 November 2020, the wedding ceremony in Amroha, Uttar Pradesh, dissolved in color when a close friend of the groom was shot in the abdomen during the Harsh firing.
These are just a few examples. Not ten or twenty but hundreds of unfortunate incidents have happened in the last few years. It is not that there is no law to stop Harsha firing. The Central Government has approved the Arms Amendment Bill 2019 from the Parliament. In the Arms Amendment Bill 2019, a provision of two years imprisonment and a fine of Rs 1 lakh has been made for firing those who declared Harsh firing as a crime. Home Minister Amit Shah said during the discussion on the bill that it is a misconception that no one is killed in firing with licensed weapons. In 2016, 191 people died in Uttar Pradesh, 12 in Bihar and 14 people in Jharkhand were killed in licensed firing with licensed weapons. The law has been made but no one fears the law. In most cases, action has been taken after the incident, the law keepers have been unable to prevent the incident from happening.
In 2016, the Delhi High Court had said that if an accident occurs during the joyous firing that takes place at the wedding and other celebrations, then the organizers of the wedding or festival will also be held responsible. This was said during the hearing on the compensation petition filed by a father. Yachty’s minor daughter died in Harsh firing in April 2016 due to bullet injuries. Justice Vibhu Bakhru had said that the event and festival organizer would have to decide that his guests would not be firing cheerfully. If Harsh firing is done, then he will inform the police about it. The court also said that something should be done in this case. If the government does not make any guidelines, then the organizer will be held responsible for it. You cannot say that you were not aware of Harsh firing or did not ask your relatives to bring weapons.
It is true that the organizers of the event will have to do something to defend themselves if the holders of the marriage are not afraid of the law. They have to be so courageous that no matter how influential or domineering, they cannot enter with arms. The message of non-arrival with weapons can also be given on the invitation letter. Those who firing cheer will have to be desperate.
– Sarwagya Shekhar