कन्या का अपमान करने पर जहां पूरी बारात हो गई थी पत्थर की
है तो यह किवदंती ही, परन्तु भारत में बेटियों के सम्मान को प्रतिबिंबित करती हुई यह कथा इस बात का प्रतीक है कि आदि काल में भी उनकी स्थिति उतनी ही पूज्यनीय थी जितनी कि वर्तमान में अपेक्षित है। आगरा से लगभग 50 कि मी के अंतराल पर कस्बा सहपऊ है। यहां स्थित है माँ भद्रकाली देवी का विशाल मंदिर। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी। नीम, पीपल व बरगद के पुराने वृक्ष मंदिर के अति प्राचीन होने का साक्ष्य हैं।
मन्दिर और माँ भद्रकाली देवी के चमत्कारों की जो कथाएं यहां प्रचलित है उनमें से एक अत्यंत रोमांचक है। बताया जाता है कि कस्बे में उस समय कोई धर्मशाला आदि न होने के कारण बरातें इसी मन्दिर में रुकती थीं। एक दिन कस्बे की कोई कन्या बारात देखने आई तो नशे में धुत्त बारातियों ने उसका अपमान कर दिया। कन्या का अपमान होते देख भद्रकाली देवी ने सारे बारातियों को पत्थर का हो जाने का श्राप दे दिया। सारे बाराती उनके ढोल नगाड़े हारमोनियम भी पत्थर के हो गए।
पत्थर के बारातियों व उनके वाद्ययंत्रों के अवशेष अभी भी मन्दिर के बगल में एक चबूतरे पर वृक्ष के नीचे रखे हुए हैं जिन्हें इस कथा की सत्यता के रूप में दर्शाया जाता है।
शहरी कोलाहल से दूर स्थित मंदिर में दोनों नवरात्रों में ज़ोर का मेला लगता है , तभी भीड़भाड़ होती है। अवकाश के दिनों में भी कुछ भक्त यहां आते हैं और मन्नत मांगते हैं। अन्यथा एक पुजारी परिवार मन्दिर प्रांगण में निवास करते हैं जो मन्दिर में नित्य प्रति पूजा पाठ व देखभाल करते हैं।
– सर्वज्ञ शेखर