पढ़ने की आदत डालें
विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
पिछली दीवाली की बात है।फेसबुक पर किसी ने एक संदेश पोस्ट किया कि उनके परिवार में किसी का निधन हो जाने के कारण इस बार वह दीपावली नहीं मनाएंगे। उनके कुछ मित्रों ने इसे भी दीपावली का सामान्य संदेश समझा और अपनी ओर से बधाई व शुभकामनाएँ प्रेषित कर दीं। पहले पक्ष ने इस बात का बुरा नहीं माना क्योंकि वह समझ गए कि मूल संदेश को पढ़े बिना ही जवाब दिया गया है, भावना गलत नहीं है। लेकिन जवाब देने वाले सज्जन ने तो अनर्थ करने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी।
विगत वर्ष अगस्त माह में ही कानपुर में भी ऐसी ही घटना हुई।एक विद्यालय के छात्र ने आवेदनपत्र में लिखा कि मेरा निधन हो गया है, अतः मुझे एक दिन का अवकाश प्रदान किया जाए। प्रधानाचार्य ने अवकाश स्वीकृत भी कर दिया। वास्तव में छात्र की दादी का निधन हुआ था।दादी की जगह उसने प्रार्थी का निधन हुआ लिख दिया था।
ऐसी और भी कई घटनाएं हैं। एक बैंक में ग्राहक ने अर्जी दी, उसमें शाखा प्रबंधक के लिए तमाम गालियां व अपशब्द कहते हुए चैक बुक देने की प्रार्थना की गई थी।प्रबंधक ने भी बस यह देखा कि चैकबुक मांगी है, उन्होंने यस लिखा और चैकबुक प्रदान कर दी।
जिन दिनों आपूर्ति विभाग से केरोसिन मिलता था, एक व्यक्ति अर्जी ले कर गया कि मैं अपनी जिंदगी से परेशान हो गया हूँ, मुझे आत्महत्या करने के लिए पांच लीटर मिट्टी का तेल दिया जाए। संबंधित अधिकारी ने बस आखिरी पंक्ति पढ़ी और पांच लीटर केरोसिन अलॉट कर दिया।
ये सारी घटनाएं काल्पनिक नहीं हैं। वास्तव में हमारी पढ़ने की आदत छूट रही है या धीरे धीरे कम होती जा रही है।हम चीजों को सरसरी तौर पर देखने लगे हैं।विद्यार्थी भी केवल परीक्षा के दिनों में ही खास-खास पाठ पढ़ कर परीक्षा पास करने का शॉर्टकट तलाशने लगे हैं। लेकिन जो वास्तव में पढ़ते हैं वह प्रतियोगी व प्रशासनिक परीक्षाओं में टॉप कर रहे हैं, देश और परिवार का नाम रोशन कर रहे हैं।
कार्यालयों में कर्मचारी व अधिकारी अपने सरकुलर्स और मेनुअल्स को भी इसी तरह सरसरी तौर पर पढ़ते हैं। इसीलिए अनेक बार गलती कर बैठते हैं।प्रत्येक निर्देश को हमें ध्यान से पढ़ना चाहिए फिर वह चाहे प्रिंटेड हो, सिस्टम में हो, ई मेल पर हो या मोबाइल पर।
पहले चाहे पुस्तक हो या लिखा हुआ कोई पृष्ठ, उसे बड़े ध्यान से पढ़ा जाता था, खास-खास बिंदुओं या पंक्तियों को रेखांकित किया जाता था, तब वह आत्मसात होता था।लेकिन अब धीरे धीरे यह आदत समाप्त होती जा रही है।
कुछ पत्रिकाएं इस आदत को सुधारने के लिए नए अंक में पिछले अंक पर आधारित प्रश्न या वर्ग पहेली देते हैं और ऐसे पाठकों को पुरस्कृत करते हैं। इसके मूल में भी यही भावना है कि पत्रिका या पुस्तक को ध्यान से पढ़ा जाए।
मैंने अनेक बड़े साहित्यकारों का साक्षात्कार किया है। सभी का मुख्य संदेश यह है कि अच्छे साहित्य को पहले पढ़ा जाए, उसके बाद लेखन कार्य शुरू करें।
आइए, विश्व पुस्तक दिवस पर हम आज से ही यह संकल्प लें कि पढ़ने की आदत में सुधार करेंगे और जो भी कुछ पढ़ेंगे उसे ध्यान से पढ़ेंगे।
– सर्वज्ञ शेखर