क्या कहता है गुपकार का उभार?
कश्मीर में गुपकार के उभार ने एक खतरनाक संकेत दिया है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यहां पहली बार डीडीसी चुनाव हुए। आठ चरण में 280 सीटों पर 51.42 प्रतिशत मतदान हुआ। इनमें विशेषकर कश्मीर में गुपकार ने जो मजबूती दिखाई है उससे सिद्ध होता है कि भाजपा की रणनीति विफल हो गई। डीडीसी चुनाव की घोषणा से पूर्व कश्मीर के ज्यादातर नेता जेल में थे। जेल से रिहा होने के बाद इन सभी ने घोषणा की कि धारा 370 की बहाली तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। भाजपा को लगा कि इससे अच्छा अवसर कोई हो ही नहीं सकता। विपक्ष की अनुपस्थिति में एक छत्र राज्य हो जाएगा। तुरंत डीडीसी चुनाव की घोषणा कर दी और राजनीतिज्ञ मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का उपराज्यपाल बना कर भेज दिया। गुपकार व अन्य विपक्षी नेताओं ने भाजपा की इस रणनीति को भांप लिया और झटपट चुनावों में भाग लेने की घोषणा कर दी।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक डीडीसी चुनाव में कश्मीर डिवीजन में गुपकार गठबंधन को 87 सीट, बीजेपी को 3, अपनी पार्टी को 8, कांग्रेस को 8 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 32 सीट मिली है। जबकि जम्मू में बीजेपी ने बाजी मारी है। यहां बीजेपी ने 74 सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि गुपकार को केवल 16 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 15 सीट, अपनी पार्टी को 2 सीट और अन्य ने 33 सीटों पर जीत हासिल की है। जैसी कि आशंका थी, गुपकार की जीत के साथ ही महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को संजीवनी मिल गई और उनके वही विघटनकारी बयान आ रहे हैं जो चुनावों से पहले आ रहे थे। ये नेता अब यह सिद्ध कर रहे हैं कि कश्मीर की जनता का अभी भी केंद्रीय सत्ता और उसके निर्णयों में विश्वास नहीं है। यह चिंतनीय है। बड़ी मुश्किलों से काश्मीर में हालात सुधर रहे थे, एक राष्ट्र और एक संविधान के नारे के साथ शांति और विकास की राह पर यह राज्य धीरे धीरे अग्रसर हो रहा था लेकिन गुपकार के उभार से यह गति अवश्य अवरुद्ध होगी।
काफी लोगों को गुपकार नाम के बारे में भ्रम रहता है। वस्तुतः गुपकार जम्मू-कश्मीर के विपक्षी दलों का एक गठबंधन है, जिसे पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेयरेशन (पीएजीडी) का नाम दिया गया है, जो एक तरह का घोषणा पत्र है। इसी गुपकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने वाली सभी पार्टियों के एक समूह को गुपकार गठबंधन कहा जाता है। इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को पहले की तरह विशेष राज्य का दर्जा दिलाना है। इस गुपकार गठबंधन में फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अलावा जम्मू-कश्मीर की 6 पार्टियां शामिल है।
श्रीनगर में एक गुपकार रोड है जहाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला का निवास स्थान है। यहाँ 4 अगस्त 2019 को कश्मीर के 8 स्थानीय दलों ने बैठक की थी। इसीलिये इसे गुपकार घोषणापत्र कहा जाता है। बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया था, जिसे गुपकार घोषणा (Gupkar Declaration) नाम दिया गया था।
अच्छा तो यही होता कि आतंकवाद, अलगाववाद और काश्मीर को भारत से अलग करने वाली धारा 370 की बहाली की मांग करने वाली शक्तियाँ इन चुनावों में कमजोर होती। परँतु ऐसा लगता है कि कश्मीर के लोगों से केंद्रीय सत्ता का संवाद अभी पूरी तरह कायम नहीं हो पाया और वहाँ की जनता के मन में विश्वास की अभी भी कमी है।हताश निराश नेता और कोंग्रेस जिसका कि किसी ने प्रचार भी नहीं किया यदि अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो इसका तात्पर्य यही है कि जनता ने अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति की है। इस आक्रोश को समय रहते कम किया जाना चाहिए था।
जब किसी टीम की हार होती है तो मन को संतोष देने के लिए यही कहा जाता है कि हम चाहे हारे पर खेल जीत गया। पर रेकॉर्ड में तो हार ही दर्ज होती है। इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में भी यही कहा जा रहा है कि कोई भी हारे या जीते यहाँ लोकतंत्र की जीत हुई है। पर रेकॉर्ड में तो दलों की हार जीत ही दर्ज होगी। जम्मू कश्मीर में कोई पहली बार चुनाव नहीं हुए हैं। यहाँ लोकसभा विधानसभा के चुनाव यथासमय होते रहे हैं, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारें काम करती रही हैं। भारत के संविधान के अनुसार शासन प्रशासन चलता है। इसलिए वहाँ लोकतंत्र की पहली बार विजय हुई है ऐसा नहीं है। कश्मीर में कमल खिल गया कह कर फूल कर कुप्पा होने की जरूरत नहीं है, जो होना चाहिए था वह नहीं हो पाया इस पर चिंतन करना चाहिए ।
– सर्वज्ञ शेखर
स्वतंत्र लेखक, साहित्यकार