चुनाव आयोग की सख्ती
चुनाव आयोग ने आज़म खान के प्रचार पर दोबारा 48 घण्टों की रोक लगा कर अपनी शक्ति का अहसास करा दिया है। आयोग की स्थिति पवनपुत्र हनुमान जी की जैसी ही है। हनुमान जी बहुत बलशाली थे परन्तु उन्हें उनकी शक्ति का अहसास कराना होता था।
सीता जी को ढूढने लंका भेजने से पूर्व जामवंत ने हनुमानजी को याद दिलाया –
“कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥
हमारे सर्वोच्च न्यायालय को भी यदा कदा जामवंत का रूप धारण करके संवैधानिक संस्थाओं को उनकी ताकत का अहसास कराना होता है। अभी हाल ही में चुनाव आयोग से सर्वोच्च न्यायालय ने कहा अपनी शक्तियों को पहचानो और उनका प्रयोग करो। बाद में आयोग द्वारा दिखाई सख्ती से सर्वोच्च न्यायालय ने संतुष्टि भी प्रकट की। यद्यपि आयोग कुछ न कुछ कदम उठा रहा था परन्तु उनका कोई प्रभाव नही हो रहा था। एक राज्यपाल व नीति आयोग के अध्यक्ष को दी गई चेतावनी पर आगे कोई कार्रवाई नही हुई। राजनीतिक दवाब हावी होने लगे, बयान वीरों, गाली बहादुरों और धर्म के नाम पर वैमनस्य फैलाने वाले कमजोर होने की बजाय मुखर होने लगे। तब हनुमानजी की भांति आयोग ने अपना रौद्र रूप दिखाया और चार बड़े प्रभावशाली नेताओं के प्रचार पर कुछ दिनों के लिये रोक लगा दी।
दंगों और अराजक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस भी यही काम करती है। किसी एक को पकड़ कर पीटना शुरू कर देती है, बाकी लोग डर कर भाग जाते हैं। विद्यालयों में भी बच्चे शोर कर रहे हों तो किसी एक को मास्टर जी बेंच पर खड़ा कर देते हैं तो बाकी सारे शांत हो जाते हैं। कम्पनियों में बॉस भी सबेरे किसी एक कर्मचारी की क्लास लगा देते हैं, तो सारे ऑफिस में कर्मचारी पूरे दिन डरे डरे से रहते हैं।
आयोग की कार्यवाही का ऐसा ही असर हुआ औऱ थोड़ा संयम दिखाई दे रहा है। हालांकि इसके बाद भी एक नेता पर जूता चला तो दूसरे पर थप्पड़ मारने जैसी निंदनीय घटनाएँ हुई।
यद्यपि चुनाव प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है इसलिये इस प्रक्रिया पर इस समय ज्यादा चर्चा करना उचित नही है पर अगले बार से इस बारे में भी विचार करना ही होगा कि प्रक्रिया को छोटा कैसे किया जाए। ओफिसों में कम्प्यूटर लगने के बाद सभी की यह अपेक्षा रही कि काम पहले के मुकाबले जल्दी हो और होता भी है। इसी प्रकार मतदान में ई वी एम का शत प्रतिशत प्रयोग होने के उपरांत यह उम्मीद की जाती रही है कि मतदान और गणना की प्रक्रिया कम लंबी हो। हालांकि इसमें अन्य संसाधनों व सुरक्षा बलों का मूवमेंट भी प्रभाव डालता है।
जितने दिन चुनाव चलते हैं उतना ही ज्यादा आरोप प्रत्यारोप और वैमनस्यता बढ़ती जाती है। इसी लिये मतदान से 48 घण्टे पूर्व प्रचार बन्द करने की भी परंपरा भी है पर वह भी अब निरर्थक सी हो गई। इन 48 घण्टों के दौरान नेता लोग जान बूझ कर रैलियां, साक्षात्कार, घोषणापत्र जारी करना आदि कार्यक्रम आयोजित कर लेते हैं जिनका टी वी चेनलों पर सीधा प्रसारण होता है। इन पर भी इन 48 घण्टों के दौरान रोक लगनी चाहिये, कुछ तो शांति रहेगी। चुनाव आयोग ने इन 48 घण्टों में घोषणापत्र जारी करने पर तो रोक लगा दी है परन्तु राजनीतिक दलों की अस्वीकार्यता के कारण अन्य सुधार नही हो पाए।
चार चरणों का चुनाव पूरी शांति के साथ संपन्न हो चुका है। अभी तीन चरण और बाकी हैं। आखिरी मतदान 18 मई में अभी भी दो सप्तह से ज्यादा शेष है। ऐसी ही शांति व संहिता के अनुपालन के साथ अगला एक माह भी बीत जाये, ऐसी ही कामना है।
-सर्वज्ञ शेखर