ताज की धवल छवि
दिवस का अवसान समीप था।गगन था कुछ लोहित हो चला।तरु-शिखा पर थी अब राजती।कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥ सुप्रसिद्ध साहित्य मनीषी हरिऔध जी ने यद्यपि यह पँक्तियाँ ताजमहल को लक्ष्य करके नहीं लिखीं थीं परँतु सूर्यास्त का अलौकिक वर्णन जिस प्रकार किया गया है उसके आलोक में ताज की धवल छवि का आजकल जिक्र अवश्य हो रहा है। शाम के साढ़े पाँच बजे जब दिवस का अवसान होता है, आसमान रक्ताभ लालिमा