ताज की धवल छवि
दिवस का अवसान समीप था।
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु-शिखा पर थी अब राजती।
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥
सुप्रसिद्ध साहित्य मनीषी हरिऔध जी ने यद्यपि यह पँक्तियाँ ताजमहल को लक्ष्य करके नहीं लिखीं थीं परँतु सूर्यास्त का अलौकिक वर्णन जिस प्रकार किया गया है उसके आलोक में ताज की धवल छवि का आजकल जिक्र अवश्य हो रहा है। शाम के साढ़े पाँच बजे जब दिवस का अवसान होता है, आसमान रक्ताभ लालिमा से आच्छादित होने वाला है, सूर्य-रश्मि वृक्षों के शिखर को छू रहीं हैं, सूरज की वही किरणें जब ताजमहल की श्वेत संगमरमर पर पदचाप करतीं हैं तो खिलखिलाते ताज की विभिन्न मुद्राएँ मनमोह लेती हैं।
24 फरवरी 2020 को इसी साढ़े पाँच बजे ट्रंप दंपत्ति ने ताज को निहार कर अपने को विश्व का सर्वाधिक सौभाग्यशाली समझा तो आज हमने भी ठीक उसी समय खेरिया मोड़ से ले कर ताज के पूर्वी गेट तक सपरिवार यात्रा की। 23 फरवरी की रात को भी शिल्पग्राम में आयोजित मुशायरे को सुनने के बाद एक दिन पहले की खूबसूरत तैयारियों का जायजा लिया तो आज एक दिन बाद का भी नजारा देखा।
एक दूसरे को निहारते मिले
ताज और किला,
ऐसा अद्भुत नजारा
एक बार फिर,
देखने को मिला
क्या करें, अपना शहर है, मन करता है, घूमते रहो…
– सर्वज्ञ शेखर