सप्ताहांत: यह पलायन नहीं है
घटना काफी पुरानी है। एक कार्यक्रम का संचालन करते समय एक अतिथि का जीवन परिचय बताते हुए मैंने कुछ ऐसा बताया कि शिक्षा पूरी करने के उपराँत वह दूसरे प्रदेश में पलायन कर गए। अतिथि महोदय थोड़ी देर में संयोजक को बता कर कार्यक्रम बीच में छोड़ कर चले गए। बाद में मुझे बताया गया कि मेरे द्वारा उनके परिचय में पलायन की बात कहने से वह नाराज थे।
पलायन शब्द मैंने बिना किसी निहितार्थ के सामान्य रूप से ही प्रयोग किया था। पूरी ईमानदारी के साथ मैं स्वीकार करता हूँ कि तब तक मुझे यह ज्ञान नहीं था कि पलायन शब्द को नकारात्मक भाव के साथ प्रयोग किया जाता है।
आजकल लॉकडाउन के कारण मजदूरों की घर वापसी के जो दारुण दृश्य सामने आ रहे हैं, उसके लिए पलायन शब्द का बहुत प्रयोग होता देख मुझे वह घटना याद आ गई। लॉकडाउन के कारण मजदूरों का पलायन, देश से प्रतिभा पलायन, शहर से गांवों की ओर पलायन, पहाड़ों से मैदान की ओर पलायन, कश्मीर से हिन्दू पंडितों का पलायन, कैराना-मुजफ्फरनगर से परिवारों का पलायन, विभाजन के बाद पलायन आदि आदि।
ये सारी घटनाऐं नकारात्मक हैं, निराशावादी हैं, हिंसक हैं, और उनसे पलायन शब्द जुड़ा है इसलिए पलायन को नकारात्मक माना जाता है। पीठ दिखा कर भागने, पराजित हो कर लौटने को भी पलायन माना जाता है। संकट से बचने को या डर कर या कर्तव्य विमुख हो कर या लोगों की नजर बचा कर अपना स्थान छोड़ देना भी पलायन की श्रेणी में ही आता है।
अंग्रेजी में पलायन को retreat, flight, desertion, escape और exodus कहते हैं। परंतु ये शब्द पूरी तरह नकारात्मक भी नहीं हैं। उस स्थान परिवर्तन को भी पलायन कहा जाता है जो डर, भय या असुरक्षा की दशा में सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए किया जाता है। किसी एक देश से दूसरे देश में जा कर नौकरी या अन्य कार्य करने जाने को प्रतिभा पलायन कहा जाता है, जबकि विदेशों में अच्छा अवसर प्राप्त करने के लिए लोग जाते हैं। गांवों से शहरों की ओर नौकरी ढूंढने या अच्छा काम ढूंढने आना भी पलायन कहा जाता है ये लोग न तो पराजित हो कर आते,न किसी को पीठ दिखा कर। हिमपात के समय पहाड़ों पर रहने वाले मैदान में आ जाते हैं, जम्मू कश्मीर में तो मौसम के हिसाब से राजधानी भी बदल जाती है, यह भी पलायन है। कुल मिला कर पलायन शब्द नकारात्मकता का प्रतीक है।
लेकिन जो परेशान मजदूर लौकडाउन के कारण अपने घरों को वापस जा रहे हैं वो मजबूर हैं। वो न तो पराजित हो कर जा रहे हैं न किसी को पीठ दिखा कर लौटे हैं। तपती धूप में छोटे-छोटे बच्चों, महिलाओं के साथ सर पर सामान रख कर चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, उनके पैरों में छाले पड़े हैं पर मंजिल बहुत दूर है। इस घर वापसी को पलायन कहना कितना सही है, यह निर्णय आप स्वयं कर सकते हैं।
– सर्वज्ञ शेखर