उमड़ घुमड़ आजा ओ बदरा
कजरारे बदरा, नभ के दामन में दमकती दामिनी, वर्षा की रिमझिम फुहारें,श्रावण गीत मल्हार,झूले, शिव-पार्वती के पूजन में मग्न षोडश श्रृंगार किए नारी समाज,बम-बम भोले करते कांवड़ धारी शिवभक्तों की टोलियां, शीतल मंद समीर के साथ हिलोरें खाती एक दूसरे से लिपटी लताएं, नव यौवनाओं के झटकते काले केशों के बीच से झांकता चाँद सा चेहरा। लगता है मस्त कामदेव धरा पर उतर आया है।
यह सब किया है केवल उमड़ते घुमड़ते मेघों ने जो आसमान में आकर पूर्व सूचना देते हैं कि आज कहीं बिजली गिरने वाली है, खुशी से डरो और अपने प्रिय से लिपट कर के सुरक्षित करलो अपने आप को अपने सुरमयी सपनों को भी।
मेघ खुशी भी देते हैं और डराते भी हैं। इसका अच्छा वर्णन भला तुलसी दास जी के अलावा कौन कर सकता है। जब राम सीता जी की खोज करते हुए, गहन जंगलों में ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचते हैं, सीता की खोज का गहन अभियान शुरू हो, इसके पहले ही वर्षा ऋतु आ जाती है। वर्षा का दृश्य राम को भी अभिभूत कर देता है। वे लक्ष्मण से कह उठते हैं –
#बरखाकालमेघनभछाए।
गरजतलागतपरम_सुहाए॥
तभी अचानक ही सीता की याद तेजी से कौंधती है और तुरंत ही बादलों के गरजने से उन्हें डर भी लगने लगता है –
#घनघमंडनभगरजतघोरा।
प्रियाहीनडरपतमनमोरा॥
हिंदी साहित्य का श्रंगार रस तो मेघ, बादल, वर्षा के बिना अपूर्ण ही रहता है। प्रबुद्ध साहित्यकारों ने मेघ से अपनी रचनाओं को सजाया है, संवारा है। गरजते मेघ बरसते बादलों ने कवियों को शब्द दिए हैं, उनकी तूलिका को वरषा ने पोषित किया है।
महाकवि कालिदास ने तो #मेघदूतम नाम से विख्यात दूतकाव्य की ही रचना कर दी। वर्षा ऋतु इस महाकाव्य के नायक को अपनी प्रेमिका की याद सताने लगती है। कामार्त नायक प्रेमिका तक अपना संदेश मेघ के माध्यम से विरहाकुल प्रेमिका तक भेजने की बात सोचता है। इस प्रकार आषाढ़ के प्रथम दिन आकाश पर उमड़ते मेघों ने कालिदास की कल्पना के साथ मिलकर एक अनन्य कृति की रचना कर दी।
सुमित्रानंदन पंत बादलों को कामरूप बताते हुए लिखते हैं –
धूम-धुआँरे ,काजल कारे ,
हम हीं बिकरारे बादल ,
मदन राज के बीर बहादुर ,
पावस के उड़ते फणिधर !
चमक झमकमय मंत्र वशीकर
छहर घहरमय विष सीकर,
स्वर्ग सेतु-से इंद्रधनुषधर ,
कामरूप घनश्याम अमर !
और अंत में, बादल और बरसात पर लिखी #स्वरचित कविताओं में से कुछ पंक्तियाँ-
सुबह जागे तो आंगन गीला था
रात शायद बरसात हो गई,
नभ के आंगन में दामिनी से
मेघों की मुलाकात हो गई ।
उमड़ घुमड़ आ जाओ बदरा
ले कर मादक बरखा बाहर,
छलक रहे हैं गीत प्यार के
उर वीणा के झंकृत हैं तार।
#सर्वज्ञ_शेखर