नववर्ष तुम आ तो गए हो
नव वर्ष तुम आ तो गए हो
क्या क्या नया लाए हो संग,
क्या बदलोगे दशा देश की
दे नई खुशियाँ और उमँग।
बदलेगा पञ्चाङ्ग कलेंडर
दिनांक आएगा बस नया,
नया नहीं हुआ कुछ भी तो
फिर कैसे नव वर्ष हो गया।
चंदा सूरज वही रहेंगे
तारों में होगी वो ही टिमटिम,
वही सुहाना मौसम होगा
और होगी वारिश रिमझिम।
पतझड़ होगा फूल खिलेंगे
पुष्पित पल्लवित चमन रहेंगे,
मधुमास की मादक मस्ती
झूम-झूम भँवरे झूमेंगे।
उसी दिशा में प्रवाहित होगी
कलकल निनादिनी की धारा,
मन्दिर मस्ज़िद वही रहेंगे
अज़ान,पूजा-वंदन हमारा।
वैसी ही होगी होली दिवाली
झूले पड़ेंगे सावन के,
गुरु पूरब, ईद, दशहरा
पुतले जलेंगे रावण के।
क्या बदलेगी सोच हमारी
नारी अत्याचार रुकेंगे,
हिंसा, हत्या, आगजनी
धोखे, पापाचार न होंगे।
अन्नदाताओं को न्याय मिलेगा
खुश होंगे क्या किसान भरपूर,
कोरोना की वैक्सीन आएगी
बीमारी होगी क्या हमसे दूर।
सीमा पर शांति कैसे होगी
आतंकवाद समाप्त हो कैसे,
भीड़ हिंसा,नफरत की ज्वाला
नए वर्ष में कम हो कैसे।
बदलना होगा हम सबको
तब ही कुछ होगा बदलाव,
नए साल की नई आभा का
तभी दिखेगा नया प्रभाव।
नया वर्ष है नई उमंग है
नया नया लगता संसार,
कुछ भी नहीं नया है जबतक
न बदले आचार विचार।
– सर्वज्ञ शेखर